हर जगह हाहाकार है,पैसे ने क्या फैलाया मायाजाल है
दोस्त दोस्त ना रहा,अपने अपने ना रहे
ये कैसा फैला अंधकार है,
वो बचपन के सपने सपने ना रहे,
वो ख्वाइशे ख्वाइशे ना रही...
भगवान, भगवान ना रहे उनके लिए
जिन पर पैसे की इनायत ना रही,
भगवान, भगवान ना रहे उनके लिए
जिन पर पैसे की इनायत ना रही,
क्यों इंसान तू इतना नादान है..?
पैसे के लिए क्यों इतना परेशान है..?
हटा पट्टी अपनी आँखों से और देख,
खुश तो वो भी नहीं जो मालामाल है ...
No comments:
Post a Comment